Thursday, October 16, 2008

एक बार फिर लौट आओ लोकनायक

प्रकाश प्रीतम
देश भूल गया कि 11 अक्टूबर उनका भी जन्म दिन था। देश को याद था तो बस ये कि सदी के महानायक बिग बी 11 अक्टूबर को जन्मे थे। जहां कहीं उनका जन्मदिन मनाया गया, वहां देश को दिशा दिखाने वाला महान इलेक्ट्रानिक मीडिया नहीं पहुंच पाया। पहुंचता तो भी हासिल क्या होता? अमिताभ के पेट का दर्द पूरे देश के लिए हेडेक बन गया। जालिम दर्द और महानायक के पेट में...? पूरा देश अमिताभ चालीसा पाठ करने लगा, इलेक्ट्रानिक मीडिया रो-रोकर अस्पताल प्रवक्ता से अधिकाधिक जानकारी उगलवाने की जुगत में भिड़ा रहा। अस्पताल प्रवक्ता भी अस्पताल का जिम्मेदार कर्मचारी कम, अमिताभ भक्त अधिक लग रहा था। यह उस बेचारे ने एक चैनल को बताया भी। आखिर हो भी क्यों न ? अमिताभ बच्चन की अपरम्पार महिमा से ही तो शायद देश में संपूर्ण क्रान्ति हुयी थी? नहीं क्या? तो किसने की देश में सम्पूर्ण क्रान्ति की पहल?टाइम्स ऑफ इंडिया (11 अक्टूबर) पढ़ लीजिए। फिर आपको हरगिज मलाल न रहेगा कि अकेले आप ही सम्पूर्ण क्रान्ति के बारे में जानते हैं। टाइम्स ऑफ इंडिया रिपोर्टर ने इंडिया गेट पर कई लोगों से पूछा कि सम्पूर्ण क्रान्ति क्या है और यह क्रान्ति किसने शुरू की। जानते हैं, जवाब क्या क्या मिले? अंग्रेजी में उचक-उचक कर और बात-बात में वाव-वाक करने वाले अंग्रेजी कोव्वों को सम्पूर्ण क्रान्ति ट्रेन का नाम नकार आता है। एक ने तो यहां तक कह डाला कि सम्पूर्ण क्रान्ति मेल नहीं, एक्सप्रेस ट्रेन है और इसे लालू प्रसाद ने शुरु किया।अंग्रेजी पढऩे वाले छोकरों को दोष नहीं देना चाहता। मैं आपकी इजाजत से इस गरीब और नीति विहीन हुक्मरानों की ऐसी-तैसी करना चाहता हूं। देश को प्रियंका गांधियों की औलाद का नाम याद है। राहुल गांधियों की प्रेमिकाओं का नाम याद है, राहुल महाजनों की बेहयाई के किस्से मुंहजबानी याद हैं, शाहरूख-सलमान और अक्षय कुमारों की कंट्रक्ट रेट्स याद हैं, पर यह याद नहीं कि 11 अक्टूबर को महानायक के बाप की उम्र का कोई लोकनायक जन्मा था। धिक्कार है, हुक्मरानों को। कांग्रेस, राजद और सपा को मुसलमानों की राजनीति से फुर्सत नहीं है। भाजपा को हिन्दुओं के लिए आंसू बहाने से फुर्सत नहीं है। वामपंथियों को रूस-चीन की चमचागिरि से फूर्सत नहीं है। आजाद भारत में तमाम पार्टियां ऐसी खुदगर्ज होंगी, ऐसी उम्मीद अगर रही होती, तो शायद देश आजाद ही न हुआ होता। वैसे भी महानायक साथ खड़ा हो तो टीवी वालों की टीआरपी बढ़ सकती है और राजनीति करने वालों के वोट बढ़ सकते हैं, (हालांकि यूपी में है दम, जुर्म यहां हैं कम का झूठा प्रचार करवाने के बावजूद महानायक के मालिकान की पार्टी औंधे मुंह गिरी थी) लोकनायक को याद करने से क्या फायदा? अहसानफरामोश सियासी पार्टियों का दंभी दौर आज नहीं, कल जरूर ढ़हेगा। महानायक का दौर भी एक दिन ढ़लान पर आएगा। लेकिन 1975 में सम्पूर्ण क्राान्ति का नारा देने वाले लोकनायक का दौर न कभी ढ़ला है, न ढ़लेगा। सूरज को बादल ढ़ंक लें तो कुछ पल रोशनी मद्धिम पड़ सकती है, हमेशा के लिए रात नहीं आ जाती।लोकनायक कोई यूं ही नहीं बना करता। लोकनायक बनने लायक तत्व आज के दौर में किसी नेता के पास हैं भी नहीं। शायद इसीलिए वे लोग भी आज सोनिया गांधियों की जूतियों की आरती उतारने को मजबूर हैं, जो कभी लोकनायक के सामने देश के नवनिर्माण के लिए न्योछावर होने का संक्लप लिया करते थे। दु:ख इसी बात का है कि ऐसे लोग बाजारू राजनीति करने पर आमादा हैं। अच्छा है, ऐसे लोगों को अरबों का चारा डकारते लोकनायक ने नहीं देखा।लोकनायक को तात्कालिक तौर पर भले भुला दे एहसान फरामोश देश। पर जिस दिन देश में किसान जागेगा, गांव जागेगा, उसी दिन इन नेताओं की नींद भी टूटेगी। और शायद वह दिन दूर नहीं है। किसानों ने नंदीग्राम और सिंगूर से अपनी उपस्थिति दर्ज कराना शुरू कर दिया है। संपूर्ण क्रान्ति का नया उदघोष ही सम्पूर्ण क्रान्ति के उस द्रष्टा का परिचय देश को कराएगा। किसी प्रतिष्ठित रचनाकार की पंक्तियों से लोकनायक को प्रणाम निवेदित करना चाहता हूं-
इस कदर भी मुतमइन होकर न बैठें हुक्मरान
अभी एक करवट और बदलेगा ये हिन्दुस्तान

1 comment:

अनुनाद सिंह said...

महान त्यागी देशभक्त को शत-शत नमन!

आपकी वाणी सत्य हो। देश का किसान, परिश्रमी। इमानदार व्यक्ति जागे। चमचागिरी का सत्यानाश हो।