Friday, December 5, 2008

वतन बेचते नेता लोग


पहन के खद्दर निकल पड़े हैं, वतन बेचने नेता लोग

मल्टी मिलियन कमा चुके पर, छूट न पाता इनका रोग

दावूद से इनके रिश्ते और आतंकी मौसेरे हैं

खरी- खरी प्रीतम कहता है, इसीलिए मुंह फेरे हैं

कुर्सी इनकी देवी है और कुर्सी ही इनकी पूजा

माल लबालब ठूंस रहे हैं, काम नही इनका दूजा

सरहद की चिंता क्या करनी, क्यूँ महंगाई का रोना

वोट पड़ेंगे तब देखेंगे, तब तक खूंटी तान के सोना

गद्दारों की फौज से बंधू कौन यहाँ रखवाला है?

बापू बोले राम से रो कर, कैसा गड़बड़झाला है?

कुंवर प्रीतम


करो खिदमत धक्कों से
आतंकी को नही मिलेगी जमीं दफ़न होने को

अपना तो ये हाल कि बंधू अश्क नही रोने को

आंसू सारे बह निकले है, नयन गए हैं सूख

२६ से बेचैन पडा हूँ, लगी नही है भूख

लगी नही है भूख, तन्हा टीवी देख रहे हैं

उनने फेंके बम-बारूद, ये अपनी सेंक रहे हैं

सुनो कुंवर की बात खरी, ये मंत्री लगते छक्कों से

जाने वाले नही भाइयों, करो खिदमत धक्कों से

कुंवर प्रीतम

ऎसी क्या मजबूरी है?
वाह सोनिया, वाह मनमोहन जी, खूब चल रहा खेल

घटा तेल के दाम रहे जब, निकल गया सब तेल

निकल गया सब तेल कि भईया टूटी कमर महंगाई में

आटा तेल की खातिर घर-घर पंगा लोग-लुगाई में

देश पूछता आखिर बंधू, ऎसी क्या मजबूरी है?

पी एम् हो तुम देश के, या सोनिया देती मजदूरी है ?

कुंवर प्रीतम