Friday, December 5, 2008

वतन बेचते नेता लोग


पहन के खद्दर निकल पड़े हैं, वतन बेचने नेता लोग

मल्टी मिलियन कमा चुके पर, छूट न पाता इनका रोग

दावूद से इनके रिश्ते और आतंकी मौसेरे हैं

खरी- खरी प्रीतम कहता है, इसीलिए मुंह फेरे हैं

कुर्सी इनकी देवी है और कुर्सी ही इनकी पूजा

माल लबालब ठूंस रहे हैं, काम नही इनका दूजा

सरहद की चिंता क्या करनी, क्यूँ महंगाई का रोना

वोट पड़ेंगे तब देखेंगे, तब तक खूंटी तान के सोना

गद्दारों की फौज से बंधू कौन यहाँ रखवाला है?

बापू बोले राम से रो कर, कैसा गड़बड़झाला है?

कुंवर प्रीतम


करो खिदमत धक्कों से
आतंकी को नही मिलेगी जमीं दफ़न होने को

अपना तो ये हाल कि बंधू अश्क नही रोने को

आंसू सारे बह निकले है, नयन गए हैं सूख

२६ से बेचैन पडा हूँ, लगी नही है भूख

लगी नही है भूख, तन्हा टीवी देख रहे हैं

उनने फेंके बम-बारूद, ये अपनी सेंक रहे हैं

सुनो कुंवर की बात खरी, ये मंत्री लगते छक्कों से

जाने वाले नही भाइयों, करो खिदमत धक्कों से

कुंवर प्रीतम

ऎसी क्या मजबूरी है?
वाह सोनिया, वाह मनमोहन जी, खूब चल रहा खेल

घटा तेल के दाम रहे जब, निकल गया सब तेल

निकल गया सब तेल कि भईया टूटी कमर महंगाई में

आटा तेल की खातिर घर-घर पंगा लोग-लुगाई में

देश पूछता आखिर बंधू, ऎसी क्या मजबूरी है?

पी एम् हो तुम देश के, या सोनिया देती मजदूरी है ?

कुंवर प्रीतम

Friday, November 14, 2008

एक नेता की दादागिरी

सही घटना पर आधारित
प्रकाश चंडालिया
13 नवंबर की रात बड़ा अजीब वाकया हुआ। कोलकाता महानगर की तंग सड़कों पर गाड़ी वालों के साथ राहगीरों के झगड़े पल-पल की घटना की तरह हैं। बात-बेबात लोग पंगे ले लेते हैं और बात ड्राइवर की पिटाई तक पहुंच जाती है। मामला पुलिस तक जाने में भी ज्यादा वक्त नहीं लगता।हमारे साथ भी कल कुछ ऐसा ही होना लिखा था। हिन्दी और राजस्थानी के मूधॆन्य कवि पद्मश्री विभूषित श्री कन्हैयालाल सेठिया की शोकसभा से लौट रहा था। वहां एक पुराने साथी मिल गए। भाई ने लौटते में लिफ्ट देकर एहसान किया। उनको दरअसल, यह दिखलाना था कि वे भी अब गाड़ीवाले हो गए हैं। यह अंदाजा मुझे उनके हावभाव से लगा। उनकी निजी औकात गाड़ी लेने लायक बनी नहीं थी, यह मैं इसलिए अच्छी तरह जानता हूं क्योंकि भाई के पास कोई ठाई कमाई का जरिया है नहीं। कई सालों से उनसे परिचित हैं मुझ जैसे कई लोग, फिर भी किसी को आज तक पता नहीं कि भाई की कमाई का जरिया क्या है। बहरहाल, उनकी किस्मत वे भोगें...। पर मेरे रिपोटर दिल ने यह पड़ताल करने में जरा भी वक्त नहीं लगाया कि आखिर उनके दरवाजे तक गाड़ी आई कैसे। भई, उनकी बेटी अभी नगर निगम में पाषॆद हैं। चुनकर आए तीन साल हुए हैं। तो भाई तीन साल में कोई नेता गाड़ी भी ना बना सके तो फिर राजनीति करना घाटे का सौदा नहीं होगा क्या? वैसे इस भाई ने मुझे कई बार कहा है कि उन्हें अब एक नया फ्लैट भी खरीदना है। मेरी तरह आप को भी इस पर चौंकने की जुरॆत नहीं होनी चाहिए। क्यों ठीक कहा ना मैंने? क्यूंकि यह तो होना ही था? निगम के पाषॆद को पगार में क्या पगार मिलती है, यह सभी जानते हैं। लेकिन महानगर में पाषॆद होना और वह भी व्यस्त व्यापािरक अंचल में, किसी बड़े कारखाने के मालिक की कमाई से कम फायदे मन्द तो होता नहीं है...। सो , चलिए, यह तो उनके परिचय का एक हिस्सा है।तो बात हम कर रहे थे, सड़क हादसों की और गाड़ी चलाने वालों की पिटाई की। तो बात १३ नवंबर की है। शाम के वक्त हम कोलकाता में सेठियाजी की शोकसभा से लौट रहे थे। यहां से हम दोनों को ही सत्संग के किसी अनुष्ठान में जाना था। बीच रास्ते में उन नेताजी टाइप प्राणी का घर भी था। सो भाई ने कहा, यार आपकी भाभी भी तैयार हैं, सो उन्हें भी साथ ले लेते हैं। तथास्तु-मैंने कहा। भाभी भी बैठ गईं। अच्छे मूड के साथ गाड़ी में हम बातें करते बढ़ रहे थे िक बड़ाबाजार के बांगड़ बिलि्डंग के समीप धीमी गति से चल रही हमारी गाड़ी के सामने एक कोई ३० साल का युवक पैदल रास्ता पार कर रहा था। उसने गाड़ीचालक को थोड़ा आगे बढ़ जाने को कहा। पाषॆद का बाप गाड़ी में बैठा हो तो किसकी मजाल जो कुछ कह डाले...रास्ता अपने बाप का जो ठहरा...। दो-चार पल ही बीते होंगे िक गाड़ी चालक से उसकी कहासुनी तेज हो गई। मेरे नेताजी दोस्त ने गाड़ी में बैठे-बैठे ही उस लड़के को चमकाने की कोशिश की, तो जवाब भी तीखा ही मिला। नेताजी के चालक को इतने में तैश आ गया। दरवाजा खोलकर वह बाहर कूदा और बीच सड़क पर उस लड़की की धुनाई शुरु कर दी। लड़का और चालक दोनों समान उम्र के थे। पटका-पटकी चलती रही। भीड़ जमा होगई। नेताजी भी उतरे और मजबूरन सामाजिकतावश मुझे भी उतरना पड़ा। दो-चार मिनट में बांगड़ बिल्डंग के समीप की रवींद्र सरणी का रास्ता अखाड़े में तब्दील हो गया। उस लड़के के साथ चल रही कुश्ती में नेताजी की गाड़ी के चालक का माथा फट गया और खून से नेताजी के कुरते की बांह भर गई। भीड़ में से कुछ ने नेताजी का साथ दिया तो कुछ ने उस स्थानीय लड़के का। किसी तरह हमलोगों के बीच बचाव से दोनों को छुड़ा लिया गया। अब शुरु हुआ, अपने-अपने लोगों को बुलाकर हिंसाब बराबर करने का खेल। नेताजी और उस लड़के ने अपने अपने मोबाइल से अपने खास लोगों को झमेले में पड़ने के लिए न्यौता दिया। लड़के का साथ देने कोई आता, उसके पहले ही नेताजी के ८-१० लड़के पहुंच गए और फिर नेताजी के इशारे पर तीन चार लोगों की कॉलर पकड़ कर अपने कब्जे में कर लिया। नेताजी की हिदायत पर उन दो लोगों को भी जबरिया कब्जे में लिया गया, जिन्होंने झमेले के समय नेताजी का विरोध करने की जुररत की थी। मेरा मानना है कि इनका कोई कसूर था नहीं। यहां बताना जरूरी है कि नेताजी की पत्नी यानी पाषॆद की माताजी इस दौरान गाड़ी में तनावग्रस्त मुद्रा में बैठी थीं। उन्हें अकेला देख उनका तनाव दूर करने मैं वहां पहुंचा तो देखा, कुछ लोग उनके सामने विनम्र भाव से इस मुद्रा में खड़े थे, जैसे इस घटना के लिए वे ही दोषी हैं। बहरहाल, नेताजी और उनके गुरगे उन तीन-चार लोगों को पकड़ थाना लेते गए। इस दौरान नेताजी ने मुझे समय नष्ट कर, सत्संग में चले जाने का अनुरोध किया। मैं भला क्या करता...मैं सत्संग में चला गया। दो घंटे बाद वहां से निकलकर मैंने नेताजी महाराज को फोन किया । मेरा मूड उन्हें यह समझाने को था कि जो हुआ सो हुआ, उस लड़के को छुड़वा दीजिए। पर नेताजी भला क्यों मानने वाले थे। उन्होंने कहा, साले को जमकर पिटवा दिया है। नहीं पिटवाते तो वहां नाक कटाई हो जाती। मैं मन मसोसकर चुप रहा। घर लौटा, नींद नहीं आई। सारी रात बेचैन रहा। यह सोचकर कि हम घर से क्या सोचकर निकलते हैं, रास्ते में क्या हो जाता है। वह लड़का तैश जरूर खा गया था, पर उसका आशय नेताजी के चालक का खून निकालता हरगिज नहीं था।बहरहाल, दूसरे दिन सुबह मैंने नेताजी को दोबारा यह सोचकर फोन किया कि बेचारे को किसी तरह छुड़वा दिया जाए। बेकार केस बनेगा और लड़का पुलिस वालों के हत्थे पड़ा रहेगा। नेताजी मेरे निवेदन पर जरा भी नहीं पिघले। बोले, साले को नन-बेलेबल केस दिलवा दिया है। चालक का खून और उनके इशारे पर रात को ही तैयार हुआ मेडिकल रिपोटॆ ने इसमें अहम भूमिका निभाई। नेताजी अपनी नेतागिरि में मस्त हो गए हैं, लड़का थाने में पड़ा सड़ रहा है। क्या ऐसे लड़के ही भविष्य में अपराधी नहीं बनते। मेरा यह सवाल आपकी साॐी में उस नेताजी से है। मुझे मालूम है, मेरा नेता दोस्त इस ब्लॉग पर कभी नहीं आएगा, पर यदि इस जैसा मिजाज रखने वाले नेता टाइप लोग इस पोस्ट को पढ़कर नेतागिरि के नाम पर गुंडागरदी बन्द कर दें, तो लिखना सारथक हो जाएगा। बहरहाल, मैं अपने आप को भी दोषी मानता हूं कि दोस्त नेता को नसीहत नहीं दे सका। एक बार तो मुझे यह भी लग रहा है कि उसने बात इसलिए बढ़ाई कि गाड़ी में उसकी बीवी भी थी। भला कोई नेता अपनी बीवी के सामने हार सकता है ? और वह भी पाषॆद का बाप होकर...।

Friday, October 24, 2008

सुशील को न्याय दिलाने के लिए पत्रकारों की बैठक

एचटी मीडिया में शीर्ष पदों पर बैठे कुछ मठाधीशों के इशारे पर वेब पत्रकार सुशील कुमार सिंह को फर्जी मुकदमें में फंसाने और पुलिस द्वारा परेशान किए जाने के खिलाफ वेब मीडिया से जुड़े लोगों ने दिल्ली में एक आपात बैठक की। इस बैठक में हिंदी के कई वेब संपादक-संचालक, वेब पत्रकार, ब्लाग माडरेटर और सोशल-पोलिटिकिल एक्टीविस्ट मौजूद थे। अध्यक्षता मशहूर पत्रकार और डेटलाइन इंडिया के संपादक आलोक तोमर ने की। संचालन विस्फोट डाट काम के संपादक संजय तिवारी ने किया। बैठक के अंत में सर्वसम्मति से तीन सूत्रीय प्रस्ताव पारित किया गया। पहले प्रस्ताव में एचटी मीडिया के कुछ लोगों और पुलिस की मिलीभगत से वरिष्ठ पत्रकार सुशील को इरादतन परेशान करने के खिलाफ आंदोलन के लिए वेब पत्रकार संघर्ष समिति का गठन किया गया।इस समिति का संयोजक मशहूर पत्रकार आलोक तोमर को बनाया गया। समिति के सदस्यों में बिच्छू डाट काम के संपादक अवधेश बजाज, प्रभासाक्षी डाट काम के समूह संपादक बालेंदु दाधीच, गुजरात ग्लोबल डाट काम के संपादक योगेश शर्मा, तीसरा स्वाधीनता आंदोलन के राष्ट्रीय संगठक गोपाल राय, विस्फोट डाट काम के संपादक संजय तिवारी, लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार अंबरीश कुमार, मीडिया खबर डाट काम के संपादक पुष्कर पुष्प, भड़ास4मीडिया डाट काम के संपादक यशवंत सिंह शामिल हैं। यह समिति एचटी मीडिया और पुलिस के सांठगांठ से सुशील कुमार सिंह को परेशान किए जाने के खिलाफ संघर्ष करेगी। समिति ने संघर्ष के लिए हर तरह का विकल्प खुला रखा है।दूसरे प्रस्ताव में कहा गया है कि वेब पत्रकार सुशील कुमार सिंह को परेशान करने के खिलाफ संघर्ष समिति का प्रतिनिधिमंडल अपनी बात ज्ञापन के जरिए एचटी मीडिया समूह चेयरपर्सन शोभना भरतिया तक पहुंचाएगा। शोभना भरतिया के यहां से अगर न्याय नहीं मिलता है तो दूसरे चरण में प्रतिनिधिमंडल गृहमंत्री शिवराज पाटिल और उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती से मिलकर पूरे प्रकरण से अवगत कराते हुए वरिष्ठ पत्रकार को फंसाने की साजिश का भंडाफोड़ करेगा। तीसरे प्रस्ताव में कहा गया है कि सभी पत्रकार संगठनों से इस मामले में हस्तक्षेप करने के लिए संपर्क किया जाएगा और एचटी मीडिया में शीर्ष पदों पर बैठे कुछ मठाधीशों के खिलाफ सीधी कार्यवाही की जाएगी।बैठक में प्रभासाक्षी डाट काम के समूह संपादक बालेन्दु दाधीच का मानना था कि मीडिया संस्थानों में डेडलाइन के दबाव में संपादकीय गलतियां होना एक आम बात है। उन्हें प्रतिष्ठा का प्रश्न बनाए जाने की जरूरत नहीं है। बीबीसी, सीएनएन और ब्लूमबर्ग जैसे संस्थानों में भी हाल ही में बड़ी गलतियां हुई हैं। यदि किसी ब्लॉग या वेबसाइट पर उन्हें उजागर किया जाता है तो उसे स्पोर्ट्समैन स्पिरिट के साथ लिया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि यदि संबंधित वेब मीडिया संस्थान के पास अपनी खबर को प्रकाशित करने का पुख्ता आधार है और समाचार के प्रकाशन के पीछे कोई दुराग्रह नहीं है तो इसमें पुलिस के हस्तक्षेप की कोई गुंजाइश नहीं है। उन्होंने संबंधित प्रकाशन संस्थान से इस मामले को तूल न देने और अभिव्यक्ति के अधिकार का सम्मान करने की अपील की।भड़ास4मीडिया डाट काम के संपादक यशवंत सिंह ने कहा कि अब समय आ गया है जब वेब माध्यमों से जुड़े लोग अपना एक संगठन बनाएं। तभी इस तरह के अलोकतांत्रिक हमलों का मुकाबला किया जा सकता है। यह किसी सुशील कुमार का मामला नहीं बल्कि यह मीडिया की आजादी पर मीडिया मठाधीशों द्वारा किए गए हमले का मामला है। ये हमले भविष्य में और बढ़ेंगे।विस्फोट डाट काम के संपादक संजय तिवारी ने कहा- ''पहली बार वेब मीडिया प्रिंट और इलेक्ट्रानिक दोनों मीडिया माध्यमों पर आलोचक की भूमिका में काम कर रहा है। इसके दूरगामी और सार्थक परिणाम निकलेंगे। इस आलोचना को स्वीकार करने की बजाय वेब माध्यमों पर इस तरह से हमला बोलना मीडिया समूहों की कुत्सित मानसिकता को उजागर करता है। उनका यह दावा भी झूठ हो जाता है कि वे अपनी आलोचना सुनने के लिए तैयार हैं।''लखनऊ से फोन पर वरिष्ठ पत्रकार अंबरीश कुमार ने कहा कि उत्तर प्रदेश में कई पत्रकार पुलिस के निशाने पर आ चुके हैं। लखीमपुर में पत्रकार समीउद्दीन नीलू के खिलाफ तत्कालीन एसपी ने न सिर्फ फर्जी मामला दर्ज कराया बल्कि वन्य जीव संरक्षण अधिनियम के तहत उसे गिरफ्तार भी करवा दिया। इस मुद्दे को लेकर मानवाधिकार आयोग ने उत्तर प्रदेश पुलिस को आड़े हाथों लिया था। इसके अलावा मुजफ्फरनगर में वरिष्ठ पत्रकार मेहरूद्दीन खान भी साजिश के चलते जेल भेज दिए गए थे। यह मामला जब संसद में उठा तो शासन-प्रशासन की नींद खुली। वेबसाइट के गपशप जैसे कालम को लेकर अब सुशील कुमार सिंह के खिलाफ शिकायत दर्ज कराना दुर्भाग्यपूर्ण है। यह बात अलग है कि पूरे मामले में किसी का भी कहीं जिक्र नहीं किया गया है।बिच्छू डाट के संपादक अवधेश बजाज ने भोपाल से और गुजरात ग्लोबल डाट काम के संपादक योगेश शर्मा ने अहमदाबाद से फोन पर मीटिंग में लिए गए फैसलों पर सहमति जताई। इन दोनों वरिष्ठ पत्रकारों ने सुशील कुमार सिंह को फंसाने की साजिश की निंदा की और इस साजिश को रचने वालों को बेनकाब करने की मांग की।बैठक के अंत में मशहूर पत्रकार और डेटलाइन इंडिया के संपादक आलोक तोमर ने अपने अध्यक्षीय संबोधन में कहा कि सुशील कुमार सिंह को परेशान करके वेब माध्यमों से जुड़े पत्रकारों को आतंकित करने की साजिश सफल नहीं होने दी जाएगी। इस लड़ाई को अंत तक लड़ा जाएगा। जो लोग साजिशें कर रहे हैं, उनके चेहरे पर पड़े नकाब को हटाने का काम और तेज किया जाएगा क्योंकि उन्हें ये लगता है कि वे पुलिस और सत्ता के सहारे सच कहने वाले पत्रकारों को धमका लेंगे तो उनकी बड़ी भूल है। हर दौर में सच कहने वाले परेशान किए जाते रहे हैं और आज दुर्भाग्य से सच कहने वालों का गला मीडिया से जुड़े लोग ही दबोच रहे हैं। ये वो लोग हैं जो मीडिया में रहते हुए बजाय पत्रकारीय नैतिकता को मानने के, पत्रकारिता के नाम पर कई तरह के धंधे कर रहे हैं। ऐसे धंधेबाजों को अपनी हकीकत का खुलासा होने का डर सता रहा है। पर उन्हें यह नहीं पता कि वे कलम को रोकने की जितनी भी कोशिशें करेंगे, कलम में स्याही उतनी ही ज्यादा बढ़ती जाएगी। सुशील कुमार प्रकरण के बहाने वेब माध्यमों के पत्रकारों में एकजुटता के लिए आई चेतना को सकारात्मक बताते हुए आलोक तोमर ने इस मुहिम को आगे बढ़ाने पर जोर दिया।बैठक में हिंदी ब्लागों के कई संचालक और मीडिया में कार्यरत पत्रकार साथी मौजूद थे।

Monday, October 20, 2008

लालू पासवान में जमीर हो तो तुंरत इस्तीफा दें

प्रकाश चंडालिया
महाराष्ट्र में उत्तर भारत , खासकर यूपी और बिहार के निर्दोष नौजवान बेरोजगारों और टैक्सी ड्राईवर को राज ठाकरे के गुंडों द्वारा निर्दयता से पीटे जाने की घटनाएँ अब आए दिन का समाचार बन चुकी हैं। गुंडई के लिए मशहूर मुंबई में राज ठाकरे आज का गुंडा नम्बर वन हो सकता है, लेकिन राजनीतिक समझ रखने वाले जानते हैं कईऐसे गुंडे ही एक दिन मुख्यमंत्री कि कुर्सी पर बैठ सकते हैं। बहरहाल आज कि तारीख में जो राज ठाकरे कर रहें हैं, यह उनकी राजनैतिक मार्केटिंग या ब्रांडिंग हो रही है, लेकिन कांग्रेस कि चुप्पी समझ नही आ रही। समूचे कांग्रेस कर्मी क्या सोनिया माता के दरबार में सत्संग कर रहे हैं ? रविवार १९ अक्टूबर की वर्द्दत परबिहार के तथाकथित मसीहाई तेवर वाले नेता लालू प्रसाद और राम विलास पासवान केवल ठाकरे के ख़िलाफ़ नाक भौं सिकोड़ते रहे। पर एक बार भी दोनों ने केन्द्र को नही कोसा। वाह भाई , गजब चिंता है गरीब नौजवानों की। दोनों नेताओं में जरा भी जमीर बची है तो तुंरत केन्द्र पर दबाव डलवा कर राज को गिरफ्तार करवाएं या सोनिया माता के १० जनपथ स्थित मन्दिर में शिर्शाशन करना छोड़ कर अपने मंत्री पद से इस्तीफा दें।कहीं ऐसा तो नही की कांग्रेस ख़ुद ही ठाकरे को बढावा दे रही हो। शिवसेना को ख़तम करने के लिए राज को बढावा देना, कांग्रेस की सोची समझी चाल हो सकती है। बांटो और राज करो कांग्रेस की पुराणी नीति रही है। एक प्रतिष्ठित रचनाकार की पंक्तियाँ पेश हैं-
सियासत के तूफ़ान में हैं तिनके की तरह
उनकी मजबूरी समझता हूँ उनपे खफा होते हुए

Saturday, October 18, 2008

हमारे प्रेरणास्त्रोत हमारे माता-पिता

माता श्रीमती भीखी देवी और पिता श्री लक्ष्मीपत सिंह चंडालिया

जिनका आशीर्वाद हमारे लिए परमात्मा का सबसे बड़ा वरदान है। उनका सुस्वास्थ्य और प्रसन्नता ही हमारा सबसे बड़ा धन है।


Thursday, October 16, 2008

एक सुनहरी यात्रा


वरिष्ठ उद्योगपति श्री बसंत कुमार बिरला उनकी धर्मपत्नी डॉ श्रीमती सरला बिरला, उत्तर प्रदेश के राज्यपाल आचार्य विष्णुकांत शास्त्री, कोलकाता की उप मेयर श्रीमती मीना पुरोहित एवं हिन्दी दैनिक राष्ट्रीय महानगर के संपादक श्री प्रकाश चंडालिया हावडा से रानीगंज के लिए ट्रेन यात्रा करते हुए। श्री बिरला ने बताया की ४० वर्षो के बाद उन्होंने ट्रेन यात्रा की । श्री बिरला ने रानीगंज में एक अस्पताल का उद्घाटन किया ।


एक बार फिर लौट आओ लोकनायक

प्रकाश प्रीतम
देश भूल गया कि 11 अक्टूबर उनका भी जन्म दिन था। देश को याद था तो बस ये कि सदी के महानायक बिग बी 11 अक्टूबर को जन्मे थे। जहां कहीं उनका जन्मदिन मनाया गया, वहां देश को दिशा दिखाने वाला महान इलेक्ट्रानिक मीडिया नहीं पहुंच पाया। पहुंचता तो भी हासिल क्या होता? अमिताभ के पेट का दर्द पूरे देश के लिए हेडेक बन गया। जालिम दर्द और महानायक के पेट में...? पूरा देश अमिताभ चालीसा पाठ करने लगा, इलेक्ट्रानिक मीडिया रो-रोकर अस्पताल प्रवक्ता से अधिकाधिक जानकारी उगलवाने की जुगत में भिड़ा रहा। अस्पताल प्रवक्ता भी अस्पताल का जिम्मेदार कर्मचारी कम, अमिताभ भक्त अधिक लग रहा था। यह उस बेचारे ने एक चैनल को बताया भी। आखिर हो भी क्यों न ? अमिताभ बच्चन की अपरम्पार महिमा से ही तो शायद देश में संपूर्ण क्रान्ति हुयी थी? नहीं क्या? तो किसने की देश में सम्पूर्ण क्रान्ति की पहल?टाइम्स ऑफ इंडिया (11 अक्टूबर) पढ़ लीजिए। फिर आपको हरगिज मलाल न रहेगा कि अकेले आप ही सम्पूर्ण क्रान्ति के बारे में जानते हैं। टाइम्स ऑफ इंडिया रिपोर्टर ने इंडिया गेट पर कई लोगों से पूछा कि सम्पूर्ण क्रान्ति क्या है और यह क्रान्ति किसने शुरू की। जानते हैं, जवाब क्या क्या मिले? अंग्रेजी में उचक-उचक कर और बात-बात में वाव-वाक करने वाले अंग्रेजी कोव्वों को सम्पूर्ण क्रान्ति ट्रेन का नाम नकार आता है। एक ने तो यहां तक कह डाला कि सम्पूर्ण क्रान्ति मेल नहीं, एक्सप्रेस ट्रेन है और इसे लालू प्रसाद ने शुरु किया।अंग्रेजी पढऩे वाले छोकरों को दोष नहीं देना चाहता। मैं आपकी इजाजत से इस गरीब और नीति विहीन हुक्मरानों की ऐसी-तैसी करना चाहता हूं। देश को प्रियंका गांधियों की औलाद का नाम याद है। राहुल गांधियों की प्रेमिकाओं का नाम याद है, राहुल महाजनों की बेहयाई के किस्से मुंहजबानी याद हैं, शाहरूख-सलमान और अक्षय कुमारों की कंट्रक्ट रेट्स याद हैं, पर यह याद नहीं कि 11 अक्टूबर को महानायक के बाप की उम्र का कोई लोकनायक जन्मा था। धिक्कार है, हुक्मरानों को। कांग्रेस, राजद और सपा को मुसलमानों की राजनीति से फुर्सत नहीं है। भाजपा को हिन्दुओं के लिए आंसू बहाने से फुर्सत नहीं है। वामपंथियों को रूस-चीन की चमचागिरि से फूर्सत नहीं है। आजाद भारत में तमाम पार्टियां ऐसी खुदगर्ज होंगी, ऐसी उम्मीद अगर रही होती, तो शायद देश आजाद ही न हुआ होता। वैसे भी महानायक साथ खड़ा हो तो टीवी वालों की टीआरपी बढ़ सकती है और राजनीति करने वालों के वोट बढ़ सकते हैं, (हालांकि यूपी में है दम, जुर्म यहां हैं कम का झूठा प्रचार करवाने के बावजूद महानायक के मालिकान की पार्टी औंधे मुंह गिरी थी) लोकनायक को याद करने से क्या फायदा? अहसानफरामोश सियासी पार्टियों का दंभी दौर आज नहीं, कल जरूर ढ़हेगा। महानायक का दौर भी एक दिन ढ़लान पर आएगा। लेकिन 1975 में सम्पूर्ण क्राान्ति का नारा देने वाले लोकनायक का दौर न कभी ढ़ला है, न ढ़लेगा। सूरज को बादल ढ़ंक लें तो कुछ पल रोशनी मद्धिम पड़ सकती है, हमेशा के लिए रात नहीं आ जाती।लोकनायक कोई यूं ही नहीं बना करता। लोकनायक बनने लायक तत्व आज के दौर में किसी नेता के पास हैं भी नहीं। शायद इसीलिए वे लोग भी आज सोनिया गांधियों की जूतियों की आरती उतारने को मजबूर हैं, जो कभी लोकनायक के सामने देश के नवनिर्माण के लिए न्योछावर होने का संक्लप लिया करते थे। दु:ख इसी बात का है कि ऐसे लोग बाजारू राजनीति करने पर आमादा हैं। अच्छा है, ऐसे लोगों को अरबों का चारा डकारते लोकनायक ने नहीं देखा।लोकनायक को तात्कालिक तौर पर भले भुला दे एहसान फरामोश देश। पर जिस दिन देश में किसान जागेगा, गांव जागेगा, उसी दिन इन नेताओं की नींद भी टूटेगी। और शायद वह दिन दूर नहीं है। किसानों ने नंदीग्राम और सिंगूर से अपनी उपस्थिति दर्ज कराना शुरू कर दिया है। संपूर्ण क्रान्ति का नया उदघोष ही सम्पूर्ण क्रान्ति के उस द्रष्टा का परिचय देश को कराएगा। किसी प्रतिष्ठित रचनाकार की पंक्तियों से लोकनायक को प्रणाम निवेदित करना चाहता हूं-
इस कदर भी मुतमइन होकर न बैठें हुक्मरान
अभी एक करवट और बदलेगा ये हिन्दुस्तान